गुरुवार, 23 मार्च 2017

बालकों के लिए शहीद दिवस

भावी पीढ़ी को अमर शहीद भगत सिंग, राजगुरु और सुखदेव के बलिदानों से परिचित कराने के लिए कॉमरेड डी.वी.एस. रेड्डी तथा उनकी टीम ने एक रोचक कार्यक्रम किया जिसमे बच्चों ने जोर शोर से भाग लिया |

फोटो सौजन्य - कॉमरेड ईश्वर पटेल 





















शहीद दिवस




तीन युवा परिंदे उड़े तो आसमान रो पड़ा...
वो हंस रहे थे मगर, हिन्दुस्तान रो पड़ा...

जिए तो खूब जिए और मरे तो खूब मरे,
महाविदाई पर सतलुज का श्मशान रो पड़ा...

गर्दनों के गुलाबों ने किया माँ का अभिषेक,
ओज भरी कुर्बानी पर सारा जहान रो पड़ा...

इंसानों को तो रोना ही था बहुत मगर,
बड़े भाइयों के थमने पर तूफ़ान रो पड़ा...

भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु दिलों में हैं,
२३ मार्च को अखिल भारत महान रो पड़ा...



     💐🙏🏻   शहीदों को नमन 🙏🏻 💐

A.GOPIKRISHNA जी की WHATSAPP पोस्ट से साभार
--------------------------------------------------------------------------------------------------
क्रांति का अर्थ – अन्याय से पैदा हालात बदलना
शहीद भगत सिंह के लिए क्रांति का अर्थ था – अन्याय से पैदा हुए हालात को बदलना । भगत सिंह ने यूरोपियन क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में पढ़ा और समाजवाद की ओर अत्यधिक आकर्षित हुए। उनके अनुसारब्रिटिश शासन को उखाड़ फेकने और भारतीय समाज के पुनर्निमाण के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल करना जरुरी था।
जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड ने बदल दिया जीवन
जब जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड हुआ तब भगत सिंह सिर्फ १२ वर्ष के थे। इस हत्याकांड ने उन्हें बहुत व्याकुल कर दिया। हत्याकांड के अगले ही दिन भगत सिंह जलिआंवाला बाग़ गए और उस जगह से मिट्टी इकठ्ठा कर इसे पूरी जिंदगी एक निशानी के रूप में रखा। इस हत्याकांड ने उनके अंग्रेजो को भारत से निकाल फेंकने के संकल्प को और सुदृढ़ कर दिया।
चौरी चौरा से निराश हुए
1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में सक्रिय हो गए। वर्ष 1922 में जब महात्मा गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपयोगी रास्ता है।
“डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट” के विरोध में फेंका बम

डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट’ के तहत पुलिस संदिग्ध गतिविधियों से सम्बंधित जुलूस को रोक और लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। केन्द्रीय विधान सभा में लाया गया यह अधिनियम एक मत से हार गया। फिर भी अँगरेज़ सरकार ने इसे जनता के हित’ में कहकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किये जाने का फैसला किया। केन्द्रीय विधान सभाजहाँ अध्यादेश पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा थामें अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सत्र के दौरान बम फेंका। बम से किसी को भी नुकसान नहीं पहुचा। उन्होंने घटनास्थल से भागने के वजाए जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी। अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने किसी भी बचाव पक्ष के वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया । भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और कई अपीलों के बावजूद भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च 1931 को प्रातःकाल फांसी दे दी गयी ।

फोटो सौजन्य - कॉमरेड योगेश सोनी 


सीटू ने शहीद दिवस मनाया
आज सीटू ने बोरिया गेट पर शहीद दिवस मनाया | इस अवसर पर सीटू नेता कॉमरेड  सीटू अध्यक्ष एस.पी.डे , पी.के.मुख़र्जी, यू.के.सूर्यवंशी, सविता कुमारी, कमलेश चोपड़ा, सहित क्षेत्र के नामचीन श्रमिक नेता श्री जयप्रकाश नायर ने सभा को संबोधित किया | इस अवसर पर, डी.के.बनर्जी , रामनिहोर , शांतकुमार डी.वी.एस.रेड्डी, वेणुगोपाल, अजय सोनी, योगेश सोनी, जय कुमार, अनिल शेखर, ओ.पी.शर्मा , ए. पी. पटेल, रविशंकर आदि मौजूद रहे |